यादव रत्न एक "Motivation" ब्लाग है, जिसपे प्राचीन एंव आधुनीक काल की पौराणीक कथा, सुविचार एंव कहनीया सेयर की जाती है.. इसका मकसद ना ही किसी जाती,धर्म समप्रदाय को ठेस पहुचाँना है, और ना ही किसी कम्पनी,संस्था या किसी भी तरह के पार्टी का Advertisement करके Mony Earn करना है.. ये अपने आप मे एक साफ सुधरा ब्लाग है. इसका मकसद लोगो मे एक आदर्श सोच का निर्माण करना है.. Note - Some content may be copyright becuse All content collected by internet,
शिवजी के वरदान के कारण मिले पांच पति
द्रौपदी पूर्व जन्म में एक बड़े ऋषि की गुणवान कन्या थी। वह रूपवती, गुणवती और सदाचारिणी थी, लेकिन पूर्वजन्मों के कर्मों के कारण किसी ने उसे पत्नी रूप में स्वीकार नहीं किया। इससे दुखी होकर वह तपस्या करने लगी। उसकी उग्र तपस्या के कारण भगवान शिव प्रसन्न हए और उन्होंने द्रौपदी से कहा तू मनचाहा वरदान मांग ले। इस पर द्रौपदी इतनी प्रसन्न हो गई कि उसने बार-बार कहा मैं सर्वगुणयुक्त पति चाहती हूं। भगवान शंकर ने कहा तूने मनचाहा पति पाने के लिए मुझसे पांच बार प्रार्थना की है। इसलिए तुझे दुसरे जन्म में एक नहीं पांच पति मिलेंगे। तब द्रौपदी ने कहा मैं तो आपकी कृपा से एक ही पति चाहती हूं। इस पर शिवजी ने कहा मेरा वरदान व्यर्थ नहीं जा सकता है। इसलिए तुझे पांच पति ही प्राप्त होंगे।
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पाण्डु पुत्र भीम के बारे में माना जाता है की उसमे हज़ार हाथियों का बल था जिसके चलते एक बार तो उसने अकेले ही नर्मदा नदी का प्रवाह रोक दिया था। लेकिन भीम में यह हज़ार हाथियों का बल आया कैसे इसकी कहानी बड़ी ही रोचक है।
कौरवों का जन्म हस्तिनापुर में हुआ था जबकि पांचो पांडवो का जन्म वन में हुआ था। पांडवों के जन्म के कुछ वर्ष पश्चात पाण्डु का निधन हो गया। पाण्डु की मृत्यु के बाद वन में रहने वाले साधुओं ने विचार किया कि पाण्डु के पुत्रों, अस्थि तथा पत्नी को हस्तिनापुर भेज देना ही उचित है। इस प्रकार समस्त ऋषिगण हस्तिनापुर आए और उन्होंने पाण्डु पुत्रों के जन्म और पाण्डु की मृत्यु के संबंध में पूरी बात भीष्म, धृतराष्ट्र आदि को बताई। भीष्म को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कुंती सहित पांचो पांण्डवों को हस्तिनापुर बुला लिया।
हस्तिनापुर में आने के बाद पाण्डवों केवैदिक संस्कार सम्पन्न हुए। पाण्डव तथा कौरव साथ ही खेलने लगे। दौडऩे में, निशाना लगाने तथा कुश्ती आदि सभी खेलों में भीम सभी धृतराष्ट्र पुत्रों को हरा देते थे। भीमसेन कौरवों से होड़ के कारण ही ऐसा करते थे लेकिन उनके मन में कोई वैर-भाव नहीं था। परंतु दुर्योधन के मन में भीमसेन के प्रति दुर्भावना पैदा हो गई। तब उसने उचित अवसर मिलते ही भीम को मारने का विचार किया।
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दुर्योधन ने एक बार खेलने के लिए गंगा तट पर शिविर लगवाया। उस स्थान का नाम रखा उदकक्रीडन। वहां खाने-पीने इत्यादि सभी सुविधाएं भी थीं। दुर्योधन ने पाण्डवों को भी वहां बुलाया। एक दिन मौका पाकर दुर्योधन ने भीम के भोजन में विष मिला दिया। विष के असर से जब भीम अचेत हो गए तो दुर्योधन ने दु:शासन के साथ मिलकर उसे गंगा में डाल दिया। भीम इसी अवस्था में नागलोक पहुंच गए। वहां सांपों ने भीम को खूब डंसा जिसके प्रभाव से विष का असर कम हो गया। जब भीम को होश आया तो वे सर्पों को मारने लगे। सभी सर्प डरकर नागराज वासुकि के पास गए और पूरी बात बताई।
तब वासुकि स्वयं भीमसेन के पास गए। उनके साथ आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना का नाना था। वह भीम से बड़े प्रेम से मिले। तब आर्यक ने वासुकि से कहा कि भीम को उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दी जाए जिनमें हजारों हाथियों का बल है। वासुकि ने इसकी स्वीकृति दे दी। तब भीम आठ कुण्ड पीकर एक दिव्य शय्या पर सो गए।
जब दुर्योधन ने भीम को विष देकर गंगा में फेंक दिया तो उसे बड़ा हर्ष हुआ। शिविर के समाप्त होने पर सभी कौरव व पाण्डव भीम के बिना ही हस्तिनापुर के लिए रवाना हो गए। पाण्डवों ने सोचा कि भीम आगे चले गए होंगे। जब सभी हस्तिनापुर पहुंचे तो युधिष्ठिर ने माता कुंती से भीम के बारे में पूछा। तब कुंती ने भीम के न लौटने की बात कही। सारी बात जानकर कुंती व्याकुल हो गई तब उन्होंने विदुर को बुलाया और भीम को ढूंढने के लिए कहा। तब विदुर ने उन्हें सांत्वना दी और सैनिकों को भीम को ढूंढने के लिए भेजा।
उधर नागलोक में भीम आठवें दिन रस पच जाने पर जागे। तब नागों ने भीम को गंगा के बाहर छोड़ दिया। जब भीम सही-सलामत हस्तिनापुर पहुंचे तो सभी को बड़ा संतोष हुआ। तब भीम ने माता कुंती व अपने भाइयों के सामने दुर्योधन द्वारा विष देकर गंगा में फेंकने तथा नागलोक में क्या-क्या हुआ, यह सब बताया। युधिष्ठिर ने भीम से यह बात किसी और को नहीं बताने के लिए कहा।
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हिन्दू ग्रन्थो के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इसे आमतौर पर भाई-बहनों का पर्व मनातेे हैं लेकिन, अलग-अलग स्थानों एवं लोक परम्परा के अनुसार अलग-अलग रूप में रक्षाबंधन का पर्व मानते हैं।
इस शाल 2016 मे भारतीय कैलेन्डर के अनुसार रक्षाबंधन का त्योहार
18 अगस्त
दिन - बृहस्पतिवार को मनाया जायेगा..
कई जगहो पे देखा जाता है भाई बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं और यजमान अपने पुरोहित को। इस प्रकार राखी बंधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं। और कई जगहो पे पत्नीया अपने पती को राखी बाधती है, प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधा जाता है। ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अतः इन्हें रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए। वैसे भी इस पर्व का संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं।
धार्मिक त्यौहारों के पीछे सदैव कुछ कहानियाँ होती हैं जिनके कारण त्यौहार मनाये जाते हैं | यह कहानियाँ ही मानव जीवन में इन त्यौहारों के प्रति आस्था बनाये रखती हैं |
अगर बात रक्षाबंधन की शुरूवात कि जाये तो रक्षाबंधन कब प्रारम्भ हुआ इसके विषय में कोई निश्चित कथा नहीं है लेकिन जैसा कि भविष्य पुराण में लिखा है, उसके अनुसार कुछ कथा जो ईस प्रकार है..
1.
शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी।
भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वह आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारेंगे। द्रौपदी के चिरहरण के समय भगवान श्रीकृष्ण ने इसी वचन को निभाया।
2.
इतिहास में भी कई ऐसी कई कहानियाँ हैं जिसमे बड़े-बड़े युद्ध को इस रक्षा सूत्र ने बचाया हैं | पहले वादे की कीमत जान से बढ़कर हुआ करती थी | अगर भाई से बहन को उसके पति की रक्षा का वचन दिया हैं तो आन बान शान परे रख उस वचन का मान रखा जाता था
राजपुताना इतिहास में महारानी कर्णावती ने अपने राज्य की रक्षा हेतु मुग़ल बादशाह हुमायु को रक्षा सूत्र बांधा था और इसके बदले में हुमायु ने बहादुर शाह जफ्फर से चित्तोड़ की रक्षा की थी | इस तरह इस त्यौहार का मान इतिहास में रखा जाता है.
3.
एक प्रचलीत कहाँनीयो मे से एक कथा ये भी है..
देवताओं और दानवो के बीच युद्ध चल रहा था जिसमे दानवो की ताकत देवताओं से कई गुना अधिक थी | देवता हर बाजी हारते दिखाई पड़ रहे थे | देवराज इंद्र के चेहरे पर भी संकट के बादल उमड़ पड़े थे | उनकी ऐसी स्थिती देख उनकी पत्नी इन्द्राणी भयभीत एवं चिंतित थी | इन्द्राणी धर्मपरायण नारी थी उन्होंने अपने पति की रक्षा हेतु घनघोर तप किया और उस तप से एक रक्षासूत्र उत्पन्न किया जिसे इन्द्राणी ने इंद्र की दाहिनी कलाई पर बांधा | वह दिन श्रावण की पूर्णिमा का दन था | और उस दिन देवताओं की जीत हुई और इंद्र सही सलामत स्वर्गलोक आये | तब एक रक्षासूत्र पत्नी ने अपने पति को बांधा था लेकिन आगे जाकर यह प्रथा भाई बहन के रिश्ते के बीच निभाई जाने लगी जो आज रक्षाबंधन के रूप में मनाई जाती हैं |
एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्योहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है..
रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि :
रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम एवं दीप जलकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुंमकुंम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं।
इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बां धती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।
इस दिन बहनों के हाथ से राखी बंधवाने से भूत-प्रेत एवं अन्य बाधाओं से भाई की रक्षा होती है। जिन लोगों की बहनें नहीं हैं वह आज के दिन किसी को मुंहबोली बहन बनाकर राखी बंधवाएं तो शुभ फल मिलता है। इन दिनों चांदी एवं सोनी की राखी का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है। चांदी एवं सोना शुद्ध धातु माना जाता है अतः इनकी राखी बांधी जा सकती है लेकिन, इनमें रेशम का धागा लपेट लेना चाहिए।
रक्षाबंधन का मंत्र : येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
रक्षाबंधन सायरी
[1]
चावल की खुशबु और केसर का सिंगार
भाल तिलक और खुशियो की बौछार
बहनो का साथ और बेसुमार प्यार
मुबारक हो आपको राखी का त्यौहार
[2]
मांगी थी दुआ हमने रबसे,
देना मुझे एक प्यारी “बहन” जो अलग हो सबसे,
उस खुदा ने दे दी हमें एक प्यारी सी “बहन” और कहा-
संभालो इसे ये “अनमोल” है सबसे…
Happy Rakhi…!
[3]
बहन का प्यार किसी दुआ से कम नहीं होता;
वो चाहे दूर भी हो तो ग़म नहीं होता;
अक्सर रिश्ते दूरियों से फीके पड़ जाते हैं;
पर भाई-बहन का प्यार कभी कम नहीं होता।
राखी की शुभ कामनायें!
[4]
याद है हमें हमारा वो बचपन;
वो लड़ना, वो झगड़ना और वो मना लेना;
यही होता है भाई-बहन का प्यार;
इसी प्यार को बढ़ाने आ रहा है राखी का त्यौहार।
राखी की शुभकामनायें!
[5]
बांध रही हूँ राखी मैं भैया, पर एक वचन देना होगा;
नहीं कभी भी बेटी से जीवन में घृणा करना होगा;
बाप बनोगे कल तुम लेकिन बेटी को भी अपनाओगे,
करके जांच गर्भ में उसकी हत्या नहीं कराओगे;
मां, बुआ, चाची, भाभी सब किसी-न-किसी की बेटी हैं;
यह जो तेरी बहना है, यह भी तो पापा की बेटी है;
बेटी अगर नहीं होगी तो बहू कहाँ से लाओगे?
अपने बेटे के हाथों में राखी किससे बँधवाओगे?
समाप्त